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my name is pratibha,it means inteligence.I believe that one should be hard working.by hard work you can get inteligence and success.

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

किशोरावस्था की दहलीज पर बच्चे

               समाज में इस समय आमतौर पर देखा जा रहा है क़ि अपने किशोर होते बच्चों से अभिभावक तारतम्य नहीं बैठा पाते हैं,और इस वजह से काफी परेशान भी रहते हैं.इस सम्बन्ध में अपना आपा खो बैठने या बहुत अधिक जल्दबाजी करने के स्थान पर परिस्थिति को समझने का प्रयास करना बेहतर होता है.असल में शैशवावस्था और बाल्यावस्था में बच्चे को कदम -कदम पर मातापिता की जरुरत महसूस होती है,वहीं किशोरावस्था की दहलीज पर खड़ा बच्चा अभिभावकों का स्वयं पर अधिक ध्यान देना पसंद नहीं करता है.
                                                 आज के माता-पिता बच्चे के जन्म से ही यथासंभव उसे अधिक से अधिक समय देते हैं,उसकी हर छोटी बड़ी ख्वाहिश पूरा करते-करते जाने अनजाने बच्चे से बहुत सी उम्मीदें भी लगा बैठते हैं.जब तक बच्चा छोटा [आठ ,दस सालतक ] रहता है,वह बड़ों से सीखना चाहता है,उसे अच्छा लगता है क़ि अभिभावक उसकी परवाह कर रहे हैं,समय देरहे हैं.किन्तु उम्र बढ़ने के साथ-साथ बच्चे के मस्तिष्क का विकास होता है और वह अपनी नजर से दुनिया देखना चाहता है ऐसे में बड़ों का हर समय रोकना टोकना उसे परेशान करने लगता है.यही वह समय होता है जब बच्चे की मनः स्थिति समझते हुए माता-पिता को अपने अन्दर बदलाव लाना चाहिए.इस उम्र में बच्चों को अभिभावकों की सही सलाह और पथ प्रदर्शन की आवश्यकता होती है न क़ि उन्हें उंगली पकड़ कर चलाने की.
                           हम जिस युग में जी रहे हैं वह सूचनाओं का युग है.टी.वी. और इन्टरनेट के माध्यम से ढेरों जानकारियां लोगों तक हर समय पहुँचती रहती हैं.अभिभावक कितने भी आधुनिक या समय के साथ चलने वाले हों किन्तु बच्चों के पास पल-पल आगे बढ़ती दुनिया की जानकारी होती है उसके सामने बड़ों काज्ञान बहुत अधिक नहीं होता.आज के समय में अभिभावक अपना ज्ञान थोपकर नहीं बल्कि अपना अनुभव  बाँट  कर माता पिता होने का फर्ज निभा सकते हैं.पिछिली पीढी में बच्चे मातापिता या शिक्षक  के द्वारा ही ज्ञान प्राप्त  करते थे किन्तु अब ऐसा  नहीं है 
                                  हमें नयी पीढी कीअकड़ देख कर उनसे निराश होने की जरुरत नहीं है,क्योंकि हम गौर से देखेंगे तो पाएंगे क़ि ये बच्चे समझदार  और महत्वकांक्षी तो हैं ही साथ ही जरुरत पड़ने पर आज्ञाकारी और सेवापरायण भी हैं.बस जरुरत है तो इस बात की अभिभावक उनकी उंगली पकड़ कर चलाने की जगह उनके साथ चलते हुए सही रास्ता दिखाएँ. .
                                         

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

ससुराल की डगर बनायें आसान

ससुराल जाने के नाम पर हर युवा लडकी के दिल में कुछ होता जरुर है चाहे वह सजन के बारे में सोच कर होने वाली मीठीसी गुदगुदी हो या सास के बारे में सोच कर लगने वाला एक अनजाना सा डर.यहाँ हम होने वाली दुल्हनों के बारे में कुछ ऐसी चर्चा करना चाहेंगे जिससे उनका जीवन आसान बन सके.
                        जीवन में हम सभीअपने सामने एक आदर्श रख कर उसपर चलने का प्रयास करते हैं,लेकिन किसी भी आदर्श पर आखें मूंद कर नहीं चला जा सकता .एक लडकी के जीवन में बहुत से चुनौतीपूर्ण अवसर आते हैं लेकिन पिया के घर जा कर वहां के माहौल में सामंजस्य बैठाते हुए अपने अस्तित्व को भी बनाये रखना शायद सबसे अधिक चुनौती भरा होता है.ये वह समय होता है जब हर एक कदम परिस्थतियों को भांप कर ही उठाना उचित होता है
                     पहले हमारे देश में संयुक्त परिवार होते थे जहाँ परिवार में ही बहुत से रिश्ते जैसे बाबा,दादी चाची , ताई भाभी,चचेरे भाई बहन  आदि के साथ रहते हुए बच्चों को बहुत सी बातें स्वयम ही समझ में आजाती थीं.आजकल एकल परिवार होते हैं जहाँ माता .पिता और बच्चे ही साथ रहते हैं.ऐसे में बच्चे सामाजिकता या पारिवारिकता से लगभग अनजान   ही रह जाते हैं आजकल लड़कियों की शिक्षा पर भी अभिभावक बहुत ध्यान देते हैं,इस कारण भी लड़कियां अधिक व्यस्तता के कारण अपने में ही सिमटी रह जाती हैं.
                                 ऐसी परिस्थतियों  में जब एक लडकी ससुराल जाती है तो रिश्तों की नासमझी ,सामाजिकता की कमी और साथ में अपनी पढाई या कामकाजी होने का दबाव इस सबके बीच उसे ससुराल में निभाना होता है.तब वह कभी टी.वी पर देखे गए सीरियलों  के आधार पर और कभी अपनी सोच से बनाये गए आदर्शों के आधार पर चलने का प्रयास करती है क्योंकि अपनी अभी तक की जिन्दगी में उसने नए रिश्तों के साथ सामंजस्य बैठाना कभी देखा या सीखा ही नहीं होता है.
                     कुछ ऐसी ही परिस्थतियों में एल .एल. बी. का आख़िरी साल कर रही नीता [काल्पनिक नाम ]जब ससुराल गयी  .तो सबका दिल जीतने की इच्छा से उसने घर का सारा कार्य स्वयं करने का प्रयास किया,सास ननद आदि को पूरा आराम देना चाहा.उसने सोचा तो ये था क़ि शायद ऐसा करने से कोई उसकी पढाई के आड़े नहीं आएगा लेकिन ऐसा हो नहीं पाया क्योंकि गृहस्थी के कामों में बहुत अधिक निपुण न होने के कारण वह कुशलता पूर्वक सब कुछ सम्हाल नहीं पाई और हर समय खाली रहने के कारण सास आदि को उसके कामों में मीनमेख निकलते रहने की आदत पड़ गयी.आगे पढाई की बात करने पर सभी उसके विरोध में हो गए क्योंकि उन्हें आराम करने की आदत पड़ चुकी थी.इस केस में हम देखते हैं क़ि अपनी ही सोच के आधार पर फैसले लेने के कारण नीता को असफलता मिली इसलिए परिस्थतियों को देखते हुए अपनी क्षमतानुसार ही कोई कदम उठाना उचित रहता है.
                                                 जीवन में अपना  लक्ष्य  पाने के लिए और रिश्तों को निभाने के लिए न तो केवल स्वार्थ भाव ले  कर काम चल सकता है और न ही केवल समर्पण और त्याग से.हम सभी साधारण इन्सान हैं और इस नाते हममे मानवीय कमजोरियां भी हैं,ऐसे में हमें प्रत्येक स्थिति में अपने मौलिक स्वरूप में रहने का प्रयास करना चाहिए.ऐसे ही एक अन्य केस में शशि[काल्पनिक नाम]अपने घर में बड़ी संतान थी ,उसके विवाह के बाद माँ बाप पर दो और बहनों की जिम्मेदारी भी थी.ससुराल आकर उसने महसूस किया क़ि सभी लोग उसके साथ रुखाई से पेश आते हैं,साथ ही पति भी अपने मित्रों या परिवार के साथ ही व्यस्त रहना पसंद करते .वह इसका कारण तो नहीं समझ पाई लेकिन अपने को बहुत एकाकी अनुभव करने लगी.मातापिता पहले ही अन्य दो बहनों की शादी को ले कर परेशान रहते थे इसलिए उनसे भी कुछ न कह सकी.जितना ही वह अपने ससुराल वालों को प्रसन्न करने की चेष्टा करती उतना ही वे उसे और उपेक्षित करते जाते .इस केस में ससुराली जान उसकी कमजोर नस पकड़ चुके थे ,सबका दिल जीतने की कोशिश करते-करते मानसिक निराशा के चलते वह बीमार रहने लगी और जीवन से हताश हो गयी.
                                          समाज में इस तरह के ढेरों उदाहरण मिल जायेंगे.इसलिए हमारी यही सलाह है क़ि सिर्फ अपने ही आदर्श या अपने ही सोच पर न चलती रहें.सहनशीलता अवश्य रखें पर एक सीमा तक.अपना दिल किसी न किसी के सामने अवश्य खोल कर रखें चाहे वह आपकी डायरी ही क्यों न हो .समाजं और परिवार व्यक्ति से ही बने हैं इसलिए एक व्यक्ति के रूप में अपने को सम्हालते हुए आगे बढिए चाहे वह ससुराल हो या अन्य कोई जगह.

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

स्वास्थ्य और सौन्दर्य

नर हो या नारी सभी अपने स्वरूप या  सौन्दर्य के बारे में कुछ न कुछ अवश्य चिंतित  रहते हैं ,या यूँ कहें क़ि स्वयं को समाज के सामने एक बेहतर रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं.स्वभाव से ही सौन्दर्य प्रिय होने के कारण स्त्रियों में यह भावना कुछ अधिक ही होती हैउनकी इसी मनोदशा का लाभ प्रसाधन कम्पनियाँ उठाती हैं और अनेक प्रकार के सौन्दर्य प्रसाधन समय समय पर लाँच करती रहती हैं लेकिन इस  तरह से जो सुन्दरता मिलती है ,उससे लम्बे समय में लाभ की जगह हानि  ही होती  है.                                                                                स्वास्थ्य और सौन्दर्य का गहरा रिश्ता है यदि हम असली खूबसूरती चाहते हैं तो हमें स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए.एक अच्छा सुगठित शरीर सभी को मोहित कर लेता है लेकिन अच्छे शरीर का  सम्बन्ध किसी बाहरी प्रसाधन आदि से नहीं बल्कि अच्छी खुराक और व्यायाम  से होता है.हमारे शरीर का वजन हमारे पैरों को ढोना होता है .अगर शरीर का   वजन नियंत्रित रखा जाये तो पैरों पर ये अनावश्यक बोझ नहीं पड़ेगा और हम पैरों  का दर्द जोड़ों का दर्द आदि व्याधियों से बच सकेंगे.संतुलित आहार लेने से हमारे शरीर को उर्जा मिलती है अनावश्यक चर्बी का बोझ हमारे शरीर को नहीं उठाना पड़ता जिससे चेहरे पर एक स्वाभाविक चमक आती है और हमारा शरीर भी स्फूर्तिवान बना रहता है.                                                                                                                                 बढ़ते हुए प्रदुषण और खाने  पीने की चीजों में मिलावट के चलते कभी कभी सेहतमंद खाना खाते हुए भी हमारे शरीर में विषैले द्रव्य इकठ्ठा होजाते हैं इन विषैले द्रव्यों या टोक्सिन्स को शरीर सेबाहर निकलने के लिए हमें अधिक से अधिक पानी पीते रहना चाहिए पानी में घुल कर शरीर की गन्दगी मूत्र या पसीने आदि द्वारा बाहर निकलती रहती है इस तरह बिना कोई अतिरिक्त प्रयास किए शरीर की सफाई हो जाती है.पानी अधिक पीने से शरीर के सभी अंगों को आवश्यक मात्र में आक्सीजन मिल जाती है और हमारे चेहरे पर एक या ताजगी

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

gmail वास्तु टिप्स

वास्तु द्वारा उपलब्ध करवाई गयी मत्वपूर्ण जानकारियों से व्यक्ति अपने जीवन में समस्याओं का कुप्रभाव काफी हद तक कम कर सकता है-                                                                                                                                  १ मकान बनवाने के लिए ली जाने वाली भूमि की धुरी पृथ्वी के चुम्बकीय अक्ष से मेल खाती हो तो उसका धनात्मक प्रभाव बढ़ जाता है.                                                                                                                       २   उत्तरी सड़क से जुड़ा भूखंड धन सम्पन्नता और वैभव प्रदान करता है.                                                            ३ पूर्वी सड़क से जुड़ा भूखंड प्रसिद्धि ,नाम और सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदान करता है                                                ४  पश्चिमी सड़क से जुड़ा भूखंड औसत माना जाता है और व्यवसायिक गतिविधियों के लिए अच्छा रहता है .        ५  दक्षिणी सड़क से जुड़ा भूखंड महिलाओं से जुड़े उद्योगों के लिए उपयुक्त है.                                                     ६    उत्तर और पूर्व में सड़कों से जुड़े भूखंड सम्पूर्ण रूप से सम्पन्नता प्रदान कर सकते हैं.                                    ७  पूर्व और दक्षिण में सड़कों से जुड़े भूखंड महिलाओं के विकास के लिए अधिक अच्छे रहते हैं.                            ८ दक्षिण और पश्चिम में सड़कों से जुड़े भूखंड औसत दर्जे के माने जाते हैं.                                                        ९  पश्चिम और उत्तरी सड़कों से जुड़े और पूर्व और पश्चिम सड़क सेजुड़े भूखंड सामान्य रूप से अच्छे माने जाते हैं.                                                                                                                                                          १०  उत्तर और दक्षिण सड़कों से जुड़े भूखंड औसत मने जाते हैं.    

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

gmailवास्तु टिप्स 3

मनुष्य का जीवन भाग्य और कर्म से संचालित होता है,वास्तु भाग्य को बदल तो नहीं सकता लेकिन जीवन को आसान अवश्य बनता है.इन बातों का ध्यान रख कर आप अपने जीवन में सुखद परिवर्तन ला सकते हैं-                  १ मेन गेट सहित घर के सभी दरवाजे अन्दर की ओर खुलने चाहिए,बाहर की ओर नहीं.                                        २ मकान का सभी निर्माण कार्य दक्षिण और पश्चिम दिशा की ओर से लगा कर करवाएं .                                       ३ मकान की छत के कोने आवश्यक रूप से चार ही होने चाहिए पाँच या अधिक नहीं.                                         ४ घर के अन्दर फलदार पेड़ या बोनसाई लगाने से बचना चाहिए.                                                                    ५  मकान की ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर तथा पश्चिम से पूरब की ओर होनी चाहिए                                  प्रतिभा मिश्र

gmailवास्तु टिप्स 1

मानव की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं ने उसकी आँखों की नींद छीन ली है इसका समाधान वास्तु में है गहरी नींद के लिए ये वास्तु टिप्स आजमा कर देंखें._                                                                                                          १_सोते समय सर दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर रखें.                                                                                    २ कोशिश करें क़ि अपराह्न तीन बजे के बाद शयन कक्ष में सूर्य किरणें न आयें .                                                  ३ सोने से एक घंटे पहले टी.वी.बंद कर दें,रेडिओ या रिकार्ड प्लयेर पर शास्त्रीय संगीत सुन सकते हैं.                       ४ शयनकक्ष में यदि शीशा लगा है तो परदे से ढक  दें.                                                                                     ५  शयन कक्ष में कोई खुली अलमारी नहीं होनी चाहिए अलमारी कवर्ड हों.                                                    प्रतिभा मिश्र                                                                                           

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

शहर अपना शहर

 अपना शहर लखनऊ अब बदल रहा है .मैंने यहीं पर अपना बचपन गुजारा है .तब के लखनऊ और आजके लखनऊ में अंतर होना बहुत बड़ी बात नहीं है,क्यों क़ि ३५ सालों में कोई चीज अगर बदलती है तो वह स्वाभाविक है उसमे कोई अचरज की बात नहीं है.आश्चर्य तो इस बात का है क़ि पिछले ३५ महीनों से भी क्म समय में इस शहर ने अपना रंग बदला है.खुशी की बात ये है क़ि ये परिवर्तन अच्छाई की और है.हम लखनऊ वासी भले ही इस परिवर्तन की तरफ अभी ध्यान नादे पा रहे हों लेकिन बाहर से आने वाला हर आदमी यहाँ की तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाता है. हालाँकि शहर में इस समय क्म चल रहा है और इस कारण लोगों को असुविधा का सामना  करना पड़ रहा है ,लेकिन आशा यही है क़ि बहुत जल्दी क्म समाप्त होते ही एक बदले हुए सुन्दर लखनऊ को हम देख सकेंगे.

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

उत्तर-पूर्व दिशा और हमारा जीवन

उत्तर-पूर्व दिशा आध्यात्मिकता से सम्बंधित होती है.आम-तौर पर इस दिशा को यदि साफ सुथरा कर के खाली छोड़ दिया जाये और प्रति दिन सायं काल ईश्वर को याद कर के एक धुप बत्ती ही जला दी जाये तो आश्चर्यजनक रूप से इसके सुखद परिणाम   मिल सकते हैं . इसके अतिरिक्त इस दिशा में यदि कुछ निर्माण करवाना  आवश्यक ही हो तो  पूजाघर,पानी की भूमिगत टंकी या बच्चों का कमरा बनवाया जा सकता है .ये बात कभी भूलनी नहीं चाहिए क़ि इस दिशा में साफ सुथरा खुला और खाली स्थान रखना अति उत्तम होता है.कभी-कभी ऐसा भी देखने में आया है क़ि इस दिशा में भूमिगत पानी की टंकी रखने को बताया जाता है तो भ्रमित हो कर लोग बिना पूछे ही saptic tank इस दिशा में बनवा देते हैं .ये निश्चित रूप से बहुत ही गलत है और इसके भयानक दुष्परिणाम हो सकते हैं,इसलिए कोई भी व्यक्ति यदि वास्तु -अनुसार गृह निर्माण करवाना चाहता है तो उसके लिए छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना बहुत जरुरी है.अंत में आप सभी से एक बात फिर दुहराना चाहूंगी कृपया कोई भी वास्तु सुधार करने से पहले सही दिशा का ज्ञान अवश्य कर लें.

सोमवार, 8 नवंबर 2010

पूर्व दिशा और वास्तु

पूर्व दिशा को वास्तु शास्त्र में बहुत महत्त्व दिया गया है ,अगर आप अपने बच्चों की उन्नति चाहते हैं ,और अपने जीवन में आध्यामिकता को स्थान देना चाहते हैं तो इस दिशा के वास्तु को अवश्य सुधारें .पूर्व दिशा से अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए इस दिशा में हरियाली रखें ,इस दिशा में बड़े-बड़े पेड़ या कंटीली झाड़ियाँ न हों इस बात का अवश्य ध्यान रखें.पूर्व दिशा में छोटे पौधे या मखमली घास रखना उत्तम होता है . छोटा सा पानी का फव्वारा ,स्वीमिंग पुल या andargraund पानी की टंकी रखने से भी बहुत अच्छे परिणाम मिल सकते हैं.इस सलाह को आजमाने से पहले कृपया सही दिशा का ज्ञान अवश्य कर लीजियेगा.तभी मनमाफिक परिणाम मिल सकेंगे.धन्यवाद.

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

स्त्री दासी नहीं स्वामिनी है.

जैसे क़ि हम पहले बात कर चुके हैं महिलाऐं किसी भी मायने में पुरुषों से पीछे नहीं हैं ,पुरुष से कम नहीं हैं लेकिन शारीरिक क्षमता की जब बात आती है तो महीने में कुछ दिन अथवा गर्भावस्था में या प्रसव के बाद जरुर स्त्री शारीरिक रूप से कुछ कमजोर हो जाती है शायद यही सोच कर स्त्री को घरेलु काम सौंपे गए रहे होंगे ताकि अपनी सुविधा और शक्ति के अनुसार वह घर और बच्चों आदि कीजिम्मेदारी सम्हाल सके ,और अर्थोपार्जन की जिम्मेदारी पुरुष पर ड़ाल दी गयी .लेकिन नजाने कब और कैसे समय बीतने के साथ घरेलु उत्तरदायित्वों का महत्त्व नकार सा दिया गया और माना जाने लगा क़ि अर्थोपार्जन ही सब कुछ है . समाज में एक अवधारणा सी बनी हुई है क़ि घर में रह कर या तो औरतें आराम करती रहती हैं या फिर गपबाजी करती रहती हैं,जबकि सच्चाई ये है क़ि हमारे पर्व ,हमारी सामाजिकता स्त्रियों की बदौलत ही चल रही है आज के दौर में बच्चों का पालन -पोषण एक मां  ही कर रही है पिता तो समय का बहाना बना कर किनारे हो जाते हैं किन्तु मां बच्चों के हर सुख -दुःख  में उनके साथ खड़ी नजर आती है.मेरी ये बातें मनगढ़ंत नहीं हैं ,मैंने बड़ी गहराई से इन सारी बातों को महसूस किया है,समाचारपत्रों में शायद आप लोगों ने भी देखा हो अनेकों प्रकार से सर्वे कर के भी  यही निष्कर्ष निकाला जाता है क़ि एक घरेलु महिला के कार्यों का अगर आकलन किया जाये तो वह किसी भी कार्यशील महिला या पुरुष के बराबर या ज्यादा ही काम करती है ,सुप्रीम कोर्ट का भी मानना है क़ि घरेलु महिला को भी वेतन मिलना चाहिए ,उसके कार्यों को हमारा समाज अनुत्पादक कार्यों की श्रेणी में नहीं रख सकता,इतना सब होने के बाद भी न जाने क्यों आज भी स्त्री अपने को कमतर समझ रही है और पुरुष के सामने एक प्रकार की हीन भावना से ग्रस्त रहती है शायद पीढी दर पीढी नीचा देखते -देखते उसकी आदत सी पड़ गयी है,लेकिन अब समय आचुका है क़ि स्त्री स्वयं अपना महत्त्व समझे .फ़िलहाल मैं यहीं पर अपनी बात समाप्त  करती हूँ .....हम आगे भी इसी विषय पर चर्चा करेंगे क़ि  स्त्री दासी नहीं स्वामिनी है....
nature is your companion

गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

परिवार और स्त्री

परिवार में  स्त्री का एक विशेष स्थान होता है ,ये बात हम सभी जानते हैं और मानते भी हैं,लेकिन केवल सामाजिक तौर पर. व्यक्तिगत तौर पर अगर आप किसी भी घर में झांक कर देखेंगे तो कहीं तो अपना पति ही कहता मिल जायेगा ,हमें तुम्हारी कोई जरुरत नहीं है ,हम अकेले भी सब सम्हाल सकते हैं ,कहीं सासु माँ सार्वजानिक तौर पर ये घोषणा करती हुई मिल जायेंगी ,अरे ये करती ही क्या हैं ये तो दिन भर सोती ही रहती हैं ,किसी घर में अपने  माता-पिता के मुंह से ही सुनने को मिल जाता है क़ि अरे बेटी की शादी की जिम्मेदारी न होती तो अब तक हमने मकान बनवा लिया होता या गाडी खरीद ली होती आदि.......  कहने का आशय ये हैकि जन्म से ले कर ही नहीं बल्कि माँ के गर्भ में आने के साथ ही स्त्री को नकारात्मक शक्तियों से जूझना पड़ता है ,इस नकारात्मकता के साथ जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है किशायद उसका जन्म ही व्यर्थ में हुआ है. एक स्त्री की सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही है क़ि दुनिया भर की नकारात्मक बातों केबीच कुछ प्रोत्साहन या सहारा कहीं से पाते हुए वह अपने व्यक्तित्व को सम्हालती है.सुना है क़ि अफ्रीका के जंगलों में आदिवासियों को जब किसी पेड़ को काटना होता है तो वे उसे काटते नहीं हैं बल्कि उसके पास खड़े हो कर रोज उसे गालियाँ  देने लगते हैं कुछ दिनों में पेड़ खुद ही सूख कर गिर जाता है .इस उदाहरण से हम आसानी से समझ सकते हैं क़ि किसी भी सजीव प्राणी के लिए नकारात्मकताओं  के बीच में जीवित रहना भी कठिन है. लेकिन स्त्री जाति ने सभी विषमताओं  से जूझते हुए न केवल अपना जीवन जिया है बल्कि एक भी मौका मिलते  ही खुद को पुरुषों  से बेहतर या बराबर  सिद्ध  भी किया है.सलाम है उस स्त्री जाति को .हम अपनी बात आगे भी जारी रखेंगे अभी समय इजाजत नहीं दे रहा है ........   

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

अपनी सही भूमिका पहचानिए

परिवार के निर्माण में पालन पोषण आदि के बारे में सभी स्त्रियाँ चिंतित रहती हैं लेकिन क्या वो अपनी  सही  भूमिका   पहचानती हैं ? इस बारे में वास्तव में मैं निश्चित नहीं हूँ ,क़ि सचमुच हर स्त्री अपनी जिम्मेदारी अपनी मानसिकता के द्वारा समझ पा रही है ? या दूसरों के द्वारा थोपी गयी जिम्मेदारियों या कार्यों को पूरा कर के ही ये सोच कर निश्चिन्त हो जाती है क़ि मै अपने कर्तव्य ठीक से पुरे कर रही हूँ .आज मैंने व्यर्थ ही ये मुद्दा नहीं उठाया है बल्कि ये एक गहरे चिंतन का नतीजा है .मैंने महसूस किया है क़ि हम अपनी बालिकाओं पर या घर की स्त्रियों पर इतनी ज्यादा जिम्मेदारियां या कहा जाये काम का बोझ डाले रहते हैं,क़ि वे स्वतन्त्र रूप से समाज या परिवार में अपनी भूमिका के बारे में सोच ही नहीं पाती हैं .
                                मैं इस बारे में कोई भाषण देना नहीं चाहती ,बस इतना चाहती हूँ क़ि सभी बहने जरुर एक बार अपने दिमाग पर जोर ड़ाल कर यद् करें क़ि क्या वो अपनी खुशी से अपनी जिम्मेदारी समझ कर पुरे जोश से अपना जीवन बिता रही हैं या फिर सिर्फ जल्दी-जल्दी दूसरों  को संतुष्ट कर के अपना कीमती समय बर्बाद ही कर रही हैं इस बारे में जरुर सोचियेगा ,कुछ दिन मैं इसी वषय पर रहूंगी चर्चा करते रहेंगे नमस्कार ...... 

बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

नारी का महत्त्व समझिये

राष्ट्र मंडल खेलों में भारत का विजय-अभियान जारी  है   .आज सुबह तक ३२ गोल्ड-मेडल जीते जा चुके थे,हमारी महिलाओं नेभी पदकों की इस दौड़ में पुरुषों का बराबर से साथ दिया है.जब भी देश के सम्मान की बात आती है,कोई मुसीबत सामने आती है हमारे देश की महिलाऐं हमेशा से बढ़-चढ़ कर अपना योगदान देती आयी हैं,और आगे भी देती रहेंगी,किन्तु शांति काल में हम इन महानता पूर्ण कार्यों को नकार कर फिर से स्त्रियों को समाज के बनाये हुए नियमों के सांचे में बैठाने की कोशिश करने लगते हैं ,क्या ये सब कभी बदलेगा?

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

घर का द्वार

घर का द्वार किस दिशा में हो,इस विषय को ले कर मकान बनवाने वाले हर आदमी केमन में सवाल उठते रहते हैं .एक सज्जन ने वास्तु आधार पर अपना मकान बनवाया और संतुष्ट भी थे,होते भी क्यों न जब से घर में शिफ्ट हुए थे ,सभी के स्वास्थ्य में सुधार भी हुआ और चारों  और से शुभ समाचार भी मिल रहे थे उसी समय कोई पुराना मित्र उनके घर आया ,उसने बताया क़ि घर  का द्वार दक्षिण दिशा में होना तो अशुभ होता है ,अब वह बड़े ही परेशान हो उठे .मुझे ये बात पता चली तो गुस्सा भी आया और हंसी भी.  मैंने उनसे पूछा क़ि आपको  जब सभी कुछ ठीक लग रहा है तो इतना परेशान होने की क्या जरुरत है यदि दक्षिण-पश्चिम में द्वार हो तो अशुभ माना जाता  है किन्तु यदि आपका प्लाट दक्षिण मुखी है ,तो दक्षिण या दक्षिण पूर्व इन दोनों ही दिशाओं में द्वार रखा जा सकता है और इसके शुभ फल भी मिलते हैं. वास्तु का अर्थ है बसना या निवास करना और वास्तु के सिधांत भी मनुष्य सुख से रह सके इसलिए हैं,ये नियम सभी लोगों पर समान रूप से लागु होते हैं इसलिए दक्षिण में द्वार होने पर मत घबराइए ये आपको हमेशा ताजगी से भरा रखेगा.कोई भी वास्तु सुधार करने से पहले बस सही दिशा का ज्ञान जरुर कर लें

बुधवार, 29 सितंबर 2010

वास्तु और विज्ञानं.

वास्तु   पर विश्वास करने वाले अधिकतर लोग इसे अंध विश्वास के रूप में देखते हैं इस विषय में मैं ये समाधान करना चाहूंगी कि वास्तु शास्त्र पूरी तरह विज्ञानं सम्मत है.भारत और विदेशों में भी अनेकों प्रयोगों के द्वारा यह प्रमाणित हो चूका है क़ि वास्तु शास्त्र के नियम  विज्ञानं के नियमों की ही भांति सार्वभोमिक हैं .sarvbhoamikta   का अर्थ है किसी भी चीज का हर परिस्थिति में लागु होना जैसे क़ि पानी को अगर  आग पर रखा जाएगा तो वह गरम अवश्य होगा चाहे उस समय हम सुखी हों ,उदास या परेशां हों ,पहली मंजिल पर हों या दसवीं पर हों ,चीन में हों या जापान में हों. उसी प्रकार वास्तु के निर्देशों का पालन करने से वे अवश्य ही हमें लाभ पहुंचाते हैं चाहे हम किसी भी जगह पर हों या किसी भी मन: स्थिति में हों..मेरा कहने का मतलब केवल इतना है क़ि अगर आप याकोई भी वास्तु को केवल इसलिए नहीं अपना रहा है क्योंकि वह इसे विज्ञानं-सम्मत नहीं मानता तो शायद वह गलत है कम से कम मेuहिसाब से किसी चीज का परीक्षण किए बिना उस पर निर्णय देना उचित नहीं लगता

शनिवार, 25 सितंबर 2010

वास्तु की उपादेयता

वास्तु की  हमारे जीवन में क्या आवश्यकता है ,कुछ लोगों ने मुझसे बात कर ये प्रश्न किया तो मेरे मन में आया क़ि शायद ये प्रश्न कुछ अन्य लोगों के मन में भी आता हो जब मैं आप लोगों से वास्तु के बारे में जानकारी देने का वादा कर चुकी हूँ तो आप लोगों के मन में भी कभी न कभी ये बात जरुर आयी होगी....तो इसका जवाब ये है क़ि हम कोई भी कर्म क्यों करते हैं ? जीवन में कुछ बेहतर पाने के लिए ही न ,तो वास्तु को भी हमें इसी लिए अपने जीवन में अपना लेना चाहिए क्यों क़ि अंगरेजी दवाओं की तरह वास्तु के कोई साइड इफेक्ट  नहीं हैं वास्तु को जी वन में अपनाने से या तो आपको फायदा होगा या पहले की तरह सब कुछ रहेगा किसी भी तरह का नुकसान होने का दर नहीं है. जैसे क़ि मैं पहले भी लिख चुकी हूँ मनुष्य के पास तीन तरह का भाग्य होता है जन्म से, कर्म से और धरती से प्राप्त, तो वासु द्वारा हम धरती से प्राप्त भाग्य को जगा सकते हैं बढा सकते हैं ये पूरी तरह विज्ञानं सम्मत है ...अगली बार वास्तु के विज्ञानं सम्मत होने पर चर्चा करेंगे.

बुधवार, 22 सितंबर 2010

hamari sahcharee prakriti

वैसे तो सहचरी शब्द का प्रयोग साथी  के लिए किया जाता है लेकिन  स्त्री हो यापुरुष सभी के जीवन में प्रकृति सहचरी केरूप में हमेशा साथ रहती है . जन्म लेने से लेकर मृत्यु तक मानव किसी न किसी रूप में प्रकृति पर आश्रित रहता है,इस बात का अनुभव मुझे परसों ही एक बार फिर हुआ जब मेरी मित्र अलका जी ने कुछ घरेलु उपचार बता कर मुझे अपच के कारण हो रहे पेट दर्द से मुक्ति दिला दी ईश्वर ने हमारे शरीर को इस प्रकार से बनाया है कि यदि हम धीरज से काम लें तो शरीर स्वयम ही अपना उपचार कर लेता है अधिकतर छोटी मोटी बीमारियों का उपचार उपवास द्वारा या ढेर सारा गर्म पानी पी कर किया जा सकता है ,अधिक जल्दी में होने पर जैसे कि आजकल सभी के पास समय का आभाव रहता है हमें जडी बूटियों ,  घरेलु नुस्खों आदि का ही उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए अन्यथा दीर्घ काल में रासायनिक तत्व युक्त दवाएं हमारे शरीर को नुकसान ही पहुंचाएंगी एक बार फिर मेरे साथ प्रकृति को नमस्कार कीजिये क्योंकि प्रकृति हमारी मां भी है सहचरी भी और मार्ग दर्शक भी.

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

हिंदी दिवस और हम

आज हिंदी दिवस है ,सभी को शुभकामनाएँ .हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाये जाने की मांग सबसे पहलेकिसी हिन्दी भाषी ने नहीं बल्कि एक गुजराती कवी ने की थी ये हमारे देश की एकता का सबसे बड़ा उदाहरण है .हम सब के लिए ये गर्व का विषय है कि जब पुरे देश में किसी एक भाषा को चुने जाने की बात आती है तो पुरे देश से हिन्दी को ही समर्थन मिलता है. राष्ट्र भाषा से आगे बढ़ते हुए आज हिन्दी अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनने कीओर अग्रसर है.ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी हिन्दी के कई  शब्दों को अपने कोष में शामिल कर चुकी है. हम सभी ब्लॉगर भी अपनी भाषा को नए आयाम देने में और समृद्ध करने में लगे हैं.चलते चलते भारतेंदु जी की  इन पंक्तियों कोयाद कर लेते हैं "निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल " सच है अपनी भाषा में ज्ञान-विज्ञानं होने से पूरेदेश की उन्नति आसवानी से हो सकती है.


    

शनिवार, 4 सितंबर 2010

महिला सशक्तिकरण.

महिला सशक्तिकरण की चर्चा सुनायी पड़ती रहती है आज समाचार पत्रों में महिलाओं के साथ किए गए दुर्व्यवहार के बारे में एक नहीं बल्कि कई ख़बरें पढ़ीं पढ़ कर मन बड़ा खट्टा सा हो गया.हमारे देश में प्राचीन काल से ही महिलाओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित किया जाता रहा है कभी "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते .....अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है वहां देवता बसते हैं " यह कहकर समाज को प्रलोभित किया गया कि भैया मान जाओ स्त्रियों का सम्मान करो तो तुम्हारे घर भुत प्रेत और राक्षस आदि नहीं आयेंगे बल्कि भगवान आयेंगे,सत्पुरुष आयेंगे कभी नवरात्र में कन्या पूजन का नियम बना कर समाज और पुरुष को स्त्री जाती के आगे झुकने के लिए एक प्रकार से देखा जाये तो विवश किया गया ये सारे नियम बनाने वाले स्त्री-उत्थान के लिए प्रयास करने वाले अधिकतर पुरुष ही थे लेकिन  ये समाज और पुरुष न तो उस प्राचीन समय में बदला और न ही आज बदलने को तैयार है जब देश के अधिकांश बड़े पदों की शोभा महिलाएं ही बाधा रही हैं .मेरा मानना है इस परिस्थिति के लिए स्त्रियाँ भी किसी हद तक दोषी हैं .क्या ये सिर्फ मेरी ही सोच है या आप लोगों को भी ऐसा लगता है मैं इस बारे में आप लोगों के विचार जानने के लिए बहुत उत्सुक हूँ कुछ आप की सुनना चाहती और भीर कुछ अपनी भी कहना चाहती हूँ .अगर आप के दिल में भी इस विषय को लेकर कुछ सवाल हैं या कुछ जवाब हैं तो हमारी आपकी जरुर जमेगी नमस्कार फिर मिलते हैं.

गुरुवार, 2 सितंबर 2010

वास्तु और पर्व

किसी भी धर्म का पर्व हो उसमें सफाई का विशेष महत्त्व होता हैं चाहे वह नहा धो कर नए कपडे पहनने की बात हो या घर को साफ सुथरा कर के रंग रोगन करवाने की, ले दे कर बात स्वछता की ही होती है . वास्तु शास्त्र में भी सफाई को बहुत महत्त्व दिया गया है वास्तु के अनुसार हमें अपने निवास को नियमित रूप से साफ करना चाहिए और कबाड़ को अवश्य ही हटाते रहना चाहिए.बहुत से लोगों के मन में ये सवाल उठता है क़ि घर में रहने वाली हर चीज कभी न कभी अवश्य प्रयोग में आ जाती है ,तोफिर वह फालतू या कबाड़ कैसे हो सकती है,इस हेतु मैं कहना चाहूंगी क़ि घर में रहने वाली वह  वस्तु जिसके बिना भी काम चल सकता है या जो पिछले तीन सालों से प्रयोग में नहीं लाई गयी हैं  वह कबाड़ की ही श्रेणी में आती है ऐसी वस्तुएं आपका विकास रोकती हैं.ऐसी चीजों के एकत्रित होनें का प्रमुख कारण है मनुष्य कीसंग्रह करने की प्रवृत्ति .हमारे आपके साथ होता ये है क़ि एक मेज पर चाय पीते पीते बोर होगये तो दूसरी मेज ले आये लेकिन पहली मेज को हटाया  नहीं बल्कि उसे बरामदे में या छत पर रख दिया,नया सोफा आ गया तो पुराने को लिविंग रूम या लाबी में रख दिया इस तरह करते-करते हमारे पास बहुत सा अतिरिक्त सामान इकठ्ठा हो जाता है जो हमें सुविधा देने की जगह हमारे लिए मुसीबत बन जाता है,व्यर्थ में ही हम अपने घर में एक वास्तु दोष पैदा कर लेते हैं .तो दोस्तों इस बार पड़ने वाले त्यौहार पर अपने आप से वादा कीजिये क़ि बेकार के मोह को त्याग कर हर फालतू चीज को अपने घर से अपनी जिन्दगी से निकाल बाहर करेंगे मैं विश्वास दिलाती हूँ क़ि  आप अपने भीतर तुरंत ही एक नयी ऊर्जा अनुभव करेंगे और बिगड़े काम बनने लगेंगे सो अलग. अच्छा अब विदा ;  और हाँ नकारात्मकता फ़ैलाने वाली इन चीजों को अपने घर से हटाने के बाद सूचित जरुर कीजियेगा क़ि आप कैसा मासुस कर रहे हैं         सकारात्मकता  या POSITIVITY

बुधवार, 1 सितंबर 2010

सत्यम शिवम् सुन्दरम

नमस्कार आप लोगों द्वारा किए गए उत्साह वर्धन के लिए बहुत  बहुत धन्यवाद ,जैसा कि आप लोग चाहते हैं कि वास्तु के सम्बन्ध में और अधिक जानकारी ब्लॉग पर देती रहूँ ,यही मेरी भी इच्छा है और मैं इस हेतु अपना प्रयास करती रहूंगी.मैं लखनऊ की रहने वाली हूँ गंगा जमुनी संस्कृति यानी कि हिन्दू  मुस्लिम सभ्यता का मिश्रण यहाँ के लोगों के खून में मानो शामिल है ,यहाँ एक शब्द बोला जाता है इंशाअल्लाह ऐसा ही होगा अर्थात भगवान ने चाहा तोऐसा ही होगा यहाँ मैं यही शब्द प्रयोग करना चाहूंगी रमजान का महीना  समाप्त होने को हैदुसरी ओर नवरात्र भी आरहे हैं ऐसे में सभी लोगों में साफ सफाई और उत्साह का माहौल होना लाजमी है साफ सफाई को वास्तु में भी बहुत महत्त्व दिया गया है जैसा कि सभी जानते हैं सत्यम शिवम् सुन्दरम हमारी   संस्कृति का सूत्र वाक्य है कृपया इसे धर्मं से न जोड़ें.;;;;तो मैं कहना ये चाहती हूँ कि साफ सफाई का सम्बन्ध    केवल  त्याहारों से ही नहीं बल्कि हमारे जीवन की खुशहाली से भी है हमारे जीवन के छोटे बड़े कामों के बनाने या बिगड़ने से भी है इस बारे में आगे विस्तार से चर्चा करूंगी;;;;.

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

prakriti hamaree mitr.

मनुष्य   प्रकृति की गोद में  पलता  बढ़ता   है ,प्रकृति  एक  मां  के  समान  अपने  बच्चे  या   कहा जाये  मानव   की   हर  जरुरत  पुरी  करती   है ,लेकिन  किसी  मुसीबत  में  पड़ने  पर  या अचानक  कोई  परेशानी  आ  जाने  पर  हम   अपनी   प्रकृति  मां  की शरण  में  जाने  के  स्थान  पर  बाहर की  दुनिया  में  बनावटी  साधनों  में  अपनी  समस्या  का  समाधान  ढूंढने लगते  हैं सच तो ये है कि प्रकृति हमारी हर  जरुरत को पूरा कर  सकती  है . ,चाहे  वह  रोटी कपडे  मकान  की  हो  रोजगार  की  हो  या  चिकित्सा  की .हम  प्रकृति  के  बीच  रहते  हुए   उसके  सहज  प्रवाह  को  आगे  बढ़ाते  हुए  उसके  संरक्षण  में  स्वयं  अपना  भी   विकास  समुचित  रूप  से  कर  सकते  हैं .लेकिन  हम  prakriti  से  प्राप्त  साधनों  का  आवश्यकता   से  अधिक  दोहन  कर  के बहुत बड़ी मुर्खता कर रहे हैं  वैसे  ही   जैसे  कोई  मुर्ख  अक्षय  पात्र ,जिससे  जब  जितना  chahe  भोजन  प्राप्त  कर  सकता  था ,उस  पात्र  ko  ही  फोड़  कर  एक   साथ  सब  कुछ  पाना   चाहता है.प्रकृति के साथ मित्रता कर प्राचीनं समय में कुछ विद्याएँ अर्जित की गयी थीं जिनमें ज्योतिष वास्तु प्राकृतिक चिकित्सा ,acupressior ,आदि का प्रमुख   स्थान है अपनी इन प्राचीन विद्याओं के बारे में चर्चा करना और अपने समाज को जागरूक करना मेरी इच्छा है इस बारे में मैं आगे भी आप लोगों से चर्चा करते रहना चाहूंगी.अब विदा चाहूंगी नमस्कार.

सोमवार, 26 जुलाई 2010

समानता का दर्जा.

बहुधा स्त्रियों को समानता का दर्जा या आरक्षण देने की बातें सुनायी देती हैं,इस विषय में मैं यही कहना चाहूंगी कि बराबरी किसी के देने से नहीं हासिल हो सकती,इस हेतु स्वयं ही जागरूक होना पड़ेगा जो भी चीज हमें मांगने से या किसी की क्रिपावश मिलती है ,उसके लिए हमें सदा ही दूसरे के अधीन रहना पड़ता है या फिर अगले की सुविधा के अनुसार चलना पड़ता है.स्त्रियों को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए स्वयं स्त्रियों को ही पहल करनी होगी.कुछ छोटे छोटे प्रयास करने होंगे,अपने व्यक्तिगत स्वार्थों और सुखों या कहा जाये काहिली को छोड़ कर समाज और परिवार की अन्य स्त्रियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी.शायद आप लोग सोच रहे होंगे कि एक औरत इतने बड़े मसले पर क्या कर सकती है लेकिन मत भूलिए कि बूंद बूंद कर के ही घट भरता है एक छोटा सा प्रयास बड़ी सफलता का आधार होता है.इस विषय में मैं आगे फिर कभी विस्तार से चर्चा करूंगी.

शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

वास्तु और धार्मिक समुदाय.

वास्तु को किसी धर्मं या समुदाय से जोड़ कर देखना उचित नहीं है .वास्तु शास्त्र सभी धर्मों एवं समुदायों के लिए समान महत्व रखता हैजिस प्रकार प्रकृति समान रूप से सभी प्राणियों पर अपने संसाधन हवा पानी आदि लुटाती है उसी प्रकार वास्तु के नियम भी मानव मात्र के लिए समान हैं.वास्तुशास्त्र मानवजाति   को लाभ पहुंचाता है,चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय के हों.

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

वास्तु और हमारा जीवन.

जीवन में खुशहाली और तरक्की हम सभी चाहते हैं,इस हेतु हम कर्म करते हैं,मनचाहा फल न मिलने पर कभी तो हताश हो जाते हैं और कभी पूजा पाठ आदि कर के अपना लक्ष्य पाने में लग जाते हैं.क्या हम अपने कर्मों के अनुसार अच्छी सफलता पा सकते हैं?बिलकुल पा सकते हैं अगर हम अपने जीवन में वास्तु को समायोजित कर लें.हर मनुष्य के पास तीन तरह का भाग्य होता है प्रथम ईश्वर से मिला भाग्य जिस पर उसका कोई नियंत्रण नहीं होता एक ही समय पर एक बच्चे का जन्म महलों में होता है और दुसरे का झोपड़े में इस पर किसी का वश नहीं यह जन्म से प्राप्त भाग्य है. द्वितीय तरह का भाग्य मनुष्य अपने कर्मों से बनाता है जो व्यक्ति जिस तरह के कर्म करता है वैसी ही सफलता पा सकता है,तृतीय तरह का भाग्य पृथ्वी द्वारा प्रदत्त होता है,इस तरह का भाग्य मनुष्य वास्तु सम्मत घर में रह कर प्राप्त कर सकता है.वास्तु हमारे भाग्य को बदल तो नहीं सकता किन्तु कम सुख को अधिक सुख में और अधिक दुःख को कम दुःख में अवश्य बदल सकता है.आज के दौर के इस भागमभाग और प्रयोगिता भरे जीवन में अगर आप अपने जीवन को कुछ बेहतर बनाना चाहते हैं ,तो मेरा आग्रह है वास्तु को अवश्य अपनाएं.

बुधवार, 21 जुलाई 2010

wastu aur ham

मानव शरीर पञ्च तत्वों से मिल कर बना है.पृथ्वी, जल ,अग्नि,वायु और आकाश.वास्तु केमाध्यम से हम इन पञ्च तत्वों का जीवन में सामंजस्य बैठा कर लाभ उठा सकते हैं.नारी इस संसार को विधाता का अनुपम वरदान है.आज की स्त्री शिकक्षित है,कामकाजी है किन्तु महिला चाहे कामकाजी हो या घरेलु उसका अधिक समय घर की चिंता करते हुए ही बीतता है.अगर कोई स्त्री वास्तु के अनुरूप अपने घर सजती संवारती है तो इसमें वह बिना कुछ खर्च किए बहुत लाभ उठता सकती है.मैं एक वास्तु शास्त्री हूँ और मैं अपने इस ज्ञान के द्वारा अपनी सभी बहनों को लाभान्वित करना चाहूंगी.इस हेतु मैं आप लोगों को जब भी अवकाश होगा कुछ टिप्स देते रहना चाहूंगी.

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

घर का वास्तु

घर का उत्तर पूर्व सदा खाली छोड़ें इस दिशा में प्रतिदिन एक धूपबत्ती जलाने से भी सुखद परिणाम पाए जा सकते हैं.वास्तु के नियमों में चाहे वह साधारण हों या किसी विशेष इच्छा की पूर्ति के लिए हों सभी में दिशाओं का विशेष महत्व होता है,अतेव सभी से निवेदन है कि कोई भी उपाय करने से पहले दिशा की जाँच अवश्य कर लें 

मंगलवार, 30 मार्च 2010

wastu aur ham

नारी इस सृष्टि को ईश्वर का उपहार है .प्रकृति को ईश्वर की सहचरी मानाजाता रहा है,प्रकृति के विविध रंग हमें  सम्मोहित करते हैं ईश्वर अपनी कलात्मकता ,रचनात्मकता ,और कभी-कभी अपने क्रोध का प्रदर्शन भी प्रकृति के माध्यम से ही करता है,प्रकृति की ही भांति नारी भी अपने में विविध रंग समेटे हुए है.बचपन से ले कर वृद्धावस्था तक नारी बेटी पत्नी और मां के रूप में अलग अलग भूमिकाओं को निभाती है गृह लक्ष्मी बन कर अपने घर को स्वर्ग सा बनाती है तो दुर्गा बन कर कभी अन्याय के खिलाफ लड़ भी जाती है.प्रकृति ईश्वर की सहचरी है किन्तु उसे अपना विवेक इस्तेमाल करने की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि ईश्वर सर्वज्ञानी एवं सर्वशक्तिमान है,हम किसी भी तरह के विनाश के लिए प्रकृति को दोषी नहीं ठहरा सकते,बस यहाँ पर स्त्री की स्थिति अलग हो जाती हैपुरुष के किसी भी गलत कार्य के लिए स्त्री को बराबर का जिम्मेदार माना जाता है इसलिए स्त्री को अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए अपने विवेक का इस्तेमाल करते रहना भी जरुरी होजाता है.जिस प्रकार एक स्त्री अपने परिवार के लिए बहुत से त्याग करती है उसी प्रकार प्रकृति ने भी अपने BACHCHON   ARTHAT मानव जाति को बहुत से वरदान देरखे हैं ,वास्तु भी उन में से एक है,जिसके बारे में आप लोगों से चर्चा करते रहना चाहूंगी.