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my name is pratibha,it means inteligence.I believe that one should be hard working.by hard work you can get inteligence and success.

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

उत्तर-पूर्व दिशा और हमारा जीवन

उत्तर-पूर्व दिशा आध्यात्मिकता से सम्बंधित होती है.आम-तौर पर इस दिशा को यदि साफ सुथरा कर के खाली छोड़ दिया जाये और प्रति दिन सायं काल ईश्वर को याद कर के एक धुप बत्ती ही जला दी जाये तो आश्चर्यजनक रूप से इसके सुखद परिणाम   मिल सकते हैं . इसके अतिरिक्त इस दिशा में यदि कुछ निर्माण करवाना  आवश्यक ही हो तो  पूजाघर,पानी की भूमिगत टंकी या बच्चों का कमरा बनवाया जा सकता है .ये बात कभी भूलनी नहीं चाहिए क़ि इस दिशा में साफ सुथरा खुला और खाली स्थान रखना अति उत्तम होता है.कभी-कभी ऐसा भी देखने में आया है क़ि इस दिशा में भूमिगत पानी की टंकी रखने को बताया जाता है तो भ्रमित हो कर लोग बिना पूछे ही saptic tank इस दिशा में बनवा देते हैं .ये निश्चित रूप से बहुत ही गलत है और इसके भयानक दुष्परिणाम हो सकते हैं,इसलिए कोई भी व्यक्ति यदि वास्तु -अनुसार गृह निर्माण करवाना चाहता है तो उसके लिए छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना बहुत जरुरी है.अंत में आप सभी से एक बात फिर दुहराना चाहूंगी कृपया कोई भी वास्तु सुधार करने से पहले सही दिशा का ज्ञान अवश्य कर लें.

सोमवार, 8 नवंबर 2010

पूर्व दिशा और वास्तु

पूर्व दिशा को वास्तु शास्त्र में बहुत महत्त्व दिया गया है ,अगर आप अपने बच्चों की उन्नति चाहते हैं ,और अपने जीवन में आध्यामिकता को स्थान देना चाहते हैं तो इस दिशा के वास्तु को अवश्य सुधारें .पूर्व दिशा से अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए इस दिशा में हरियाली रखें ,इस दिशा में बड़े-बड़े पेड़ या कंटीली झाड़ियाँ न हों इस बात का अवश्य ध्यान रखें.पूर्व दिशा में छोटे पौधे या मखमली घास रखना उत्तम होता है . छोटा सा पानी का फव्वारा ,स्वीमिंग पुल या andargraund पानी की टंकी रखने से भी बहुत अच्छे परिणाम मिल सकते हैं.इस सलाह को आजमाने से पहले कृपया सही दिशा का ज्ञान अवश्य कर लीजियेगा.तभी मनमाफिक परिणाम मिल सकेंगे.धन्यवाद.

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

स्त्री दासी नहीं स्वामिनी है.

जैसे क़ि हम पहले बात कर चुके हैं महिलाऐं किसी भी मायने में पुरुषों से पीछे नहीं हैं ,पुरुष से कम नहीं हैं लेकिन शारीरिक क्षमता की जब बात आती है तो महीने में कुछ दिन अथवा गर्भावस्था में या प्रसव के बाद जरुर स्त्री शारीरिक रूप से कुछ कमजोर हो जाती है शायद यही सोच कर स्त्री को घरेलु काम सौंपे गए रहे होंगे ताकि अपनी सुविधा और शक्ति के अनुसार वह घर और बच्चों आदि कीजिम्मेदारी सम्हाल सके ,और अर्थोपार्जन की जिम्मेदारी पुरुष पर ड़ाल दी गयी .लेकिन नजाने कब और कैसे समय बीतने के साथ घरेलु उत्तरदायित्वों का महत्त्व नकार सा दिया गया और माना जाने लगा क़ि अर्थोपार्जन ही सब कुछ है . समाज में एक अवधारणा सी बनी हुई है क़ि घर में रह कर या तो औरतें आराम करती रहती हैं या फिर गपबाजी करती रहती हैं,जबकि सच्चाई ये है क़ि हमारे पर्व ,हमारी सामाजिकता स्त्रियों की बदौलत ही चल रही है आज के दौर में बच्चों का पालन -पोषण एक मां  ही कर रही है पिता तो समय का बहाना बना कर किनारे हो जाते हैं किन्तु मां बच्चों के हर सुख -दुःख  में उनके साथ खड़ी नजर आती है.मेरी ये बातें मनगढ़ंत नहीं हैं ,मैंने बड़ी गहराई से इन सारी बातों को महसूस किया है,समाचारपत्रों में शायद आप लोगों ने भी देखा हो अनेकों प्रकार से सर्वे कर के भी  यही निष्कर्ष निकाला जाता है क़ि एक घरेलु महिला के कार्यों का अगर आकलन किया जाये तो वह किसी भी कार्यशील महिला या पुरुष के बराबर या ज्यादा ही काम करती है ,सुप्रीम कोर्ट का भी मानना है क़ि घरेलु महिला को भी वेतन मिलना चाहिए ,उसके कार्यों को हमारा समाज अनुत्पादक कार्यों की श्रेणी में नहीं रख सकता,इतना सब होने के बाद भी न जाने क्यों आज भी स्त्री अपने को कमतर समझ रही है और पुरुष के सामने एक प्रकार की हीन भावना से ग्रस्त रहती है शायद पीढी दर पीढी नीचा देखते -देखते उसकी आदत सी पड़ गयी है,लेकिन अब समय आचुका है क़ि स्त्री स्वयं अपना महत्त्व समझे .फ़िलहाल मैं यहीं पर अपनी बात समाप्त  करती हूँ .....हम आगे भी इसी विषय पर चर्चा करेंगे क़ि  स्त्री दासी नहीं स्वामिनी है....
nature is your companion