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my name is pratibha,it means inteligence.I believe that one should be hard working.by hard work you can get inteligence and success.

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

स्त्री दासी नहीं स्वामिनी है.

जैसे क़ि हम पहले बात कर चुके हैं महिलाऐं किसी भी मायने में पुरुषों से पीछे नहीं हैं ,पुरुष से कम नहीं हैं लेकिन शारीरिक क्षमता की जब बात आती है तो महीने में कुछ दिन अथवा गर्भावस्था में या प्रसव के बाद जरुर स्त्री शारीरिक रूप से कुछ कमजोर हो जाती है शायद यही सोच कर स्त्री को घरेलु काम सौंपे गए रहे होंगे ताकि अपनी सुविधा और शक्ति के अनुसार वह घर और बच्चों आदि कीजिम्मेदारी सम्हाल सके ,और अर्थोपार्जन की जिम्मेदारी पुरुष पर ड़ाल दी गयी .लेकिन नजाने कब और कैसे समय बीतने के साथ घरेलु उत्तरदायित्वों का महत्त्व नकार सा दिया गया और माना जाने लगा क़ि अर्थोपार्जन ही सब कुछ है . समाज में एक अवधारणा सी बनी हुई है क़ि घर में रह कर या तो औरतें आराम करती रहती हैं या फिर गपबाजी करती रहती हैं,जबकि सच्चाई ये है क़ि हमारे पर्व ,हमारी सामाजिकता स्त्रियों की बदौलत ही चल रही है आज के दौर में बच्चों का पालन -पोषण एक मां  ही कर रही है पिता तो समय का बहाना बना कर किनारे हो जाते हैं किन्तु मां बच्चों के हर सुख -दुःख  में उनके साथ खड़ी नजर आती है.मेरी ये बातें मनगढ़ंत नहीं हैं ,मैंने बड़ी गहराई से इन सारी बातों को महसूस किया है,समाचारपत्रों में शायद आप लोगों ने भी देखा हो अनेकों प्रकार से सर्वे कर के भी  यही निष्कर्ष निकाला जाता है क़ि एक घरेलु महिला के कार्यों का अगर आकलन किया जाये तो वह किसी भी कार्यशील महिला या पुरुष के बराबर या ज्यादा ही काम करती है ,सुप्रीम कोर्ट का भी मानना है क़ि घरेलु महिला को भी वेतन मिलना चाहिए ,उसके कार्यों को हमारा समाज अनुत्पादक कार्यों की श्रेणी में नहीं रख सकता,इतना सब होने के बाद भी न जाने क्यों आज भी स्त्री अपने को कमतर समझ रही है और पुरुष के सामने एक प्रकार की हीन भावना से ग्रस्त रहती है शायद पीढी दर पीढी नीचा देखते -देखते उसकी आदत सी पड़ गयी है,लेकिन अब समय आचुका है क़ि स्त्री स्वयं अपना महत्त्व समझे .फ़िलहाल मैं यहीं पर अपनी बात समाप्त  करती हूँ .....हम आगे भी इसी विषय पर चर्चा करेंगे क़ि  स्त्री दासी नहीं स्वामिनी है....

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