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my name is pratibha,it means inteligence.I believe that one should be hard working.by hard work you can get inteligence and success.

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

किशोरावस्था की दहलीज पर बच्चे

               समाज में इस समय आमतौर पर देखा जा रहा है क़ि अपने किशोर होते बच्चों से अभिभावक तारतम्य नहीं बैठा पाते हैं,और इस वजह से काफी परेशान भी रहते हैं.इस सम्बन्ध में अपना आपा खो बैठने या बहुत अधिक जल्दबाजी करने के स्थान पर परिस्थिति को समझने का प्रयास करना बेहतर होता है.असल में शैशवावस्था और बाल्यावस्था में बच्चे को कदम -कदम पर मातापिता की जरुरत महसूस होती है,वहीं किशोरावस्था की दहलीज पर खड़ा बच्चा अभिभावकों का स्वयं पर अधिक ध्यान देना पसंद नहीं करता है.
                                                 आज के माता-पिता बच्चे के जन्म से ही यथासंभव उसे अधिक से अधिक समय देते हैं,उसकी हर छोटी बड़ी ख्वाहिश पूरा करते-करते जाने अनजाने बच्चे से बहुत सी उम्मीदें भी लगा बैठते हैं.जब तक बच्चा छोटा [आठ ,दस सालतक ] रहता है,वह बड़ों से सीखना चाहता है,उसे अच्छा लगता है क़ि अभिभावक उसकी परवाह कर रहे हैं,समय देरहे हैं.किन्तु उम्र बढ़ने के साथ-साथ बच्चे के मस्तिष्क का विकास होता है और वह अपनी नजर से दुनिया देखना चाहता है ऐसे में बड़ों का हर समय रोकना टोकना उसे परेशान करने लगता है.यही वह समय होता है जब बच्चे की मनः स्थिति समझते हुए माता-पिता को अपने अन्दर बदलाव लाना चाहिए.इस उम्र में बच्चों को अभिभावकों की सही सलाह और पथ प्रदर्शन की आवश्यकता होती है न क़ि उन्हें उंगली पकड़ कर चलाने की.
                           हम जिस युग में जी रहे हैं वह सूचनाओं का युग है.टी.वी. और इन्टरनेट के माध्यम से ढेरों जानकारियां लोगों तक हर समय पहुँचती रहती हैं.अभिभावक कितने भी आधुनिक या समय के साथ चलने वाले हों किन्तु बच्चों के पास पल-पल आगे बढ़ती दुनिया की जानकारी होती है उसके सामने बड़ों काज्ञान बहुत अधिक नहीं होता.आज के समय में अभिभावक अपना ज्ञान थोपकर नहीं बल्कि अपना अनुभव  बाँट  कर माता पिता होने का फर्ज निभा सकते हैं.पिछिली पीढी में बच्चे मातापिता या शिक्षक  के द्वारा ही ज्ञान प्राप्त  करते थे किन्तु अब ऐसा  नहीं है 
                                  हमें नयी पीढी कीअकड़ देख कर उनसे निराश होने की जरुरत नहीं है,क्योंकि हम गौर से देखेंगे तो पाएंगे क़ि ये बच्चे समझदार  और महत्वकांक्षी तो हैं ही साथ ही जरुरत पड़ने पर आज्ञाकारी और सेवापरायण भी हैं.बस जरुरत है तो इस बात की अभिभावक उनकी उंगली पकड़ कर चलाने की जगह उनके साथ चलते हुए सही रास्ता दिखाएँ. .
                                         

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

ससुराल की डगर बनायें आसान

ससुराल जाने के नाम पर हर युवा लडकी के दिल में कुछ होता जरुर है चाहे वह सजन के बारे में सोच कर होने वाली मीठीसी गुदगुदी हो या सास के बारे में सोच कर लगने वाला एक अनजाना सा डर.यहाँ हम होने वाली दुल्हनों के बारे में कुछ ऐसी चर्चा करना चाहेंगे जिससे उनका जीवन आसान बन सके.
                        जीवन में हम सभीअपने सामने एक आदर्श रख कर उसपर चलने का प्रयास करते हैं,लेकिन किसी भी आदर्श पर आखें मूंद कर नहीं चला जा सकता .एक लडकी के जीवन में बहुत से चुनौतीपूर्ण अवसर आते हैं लेकिन पिया के घर जा कर वहां के माहौल में सामंजस्य बैठाते हुए अपने अस्तित्व को भी बनाये रखना शायद सबसे अधिक चुनौती भरा होता है.ये वह समय होता है जब हर एक कदम परिस्थतियों को भांप कर ही उठाना उचित होता है
                     पहले हमारे देश में संयुक्त परिवार होते थे जहाँ परिवार में ही बहुत से रिश्ते जैसे बाबा,दादी चाची , ताई भाभी,चचेरे भाई बहन  आदि के साथ रहते हुए बच्चों को बहुत सी बातें स्वयम ही समझ में आजाती थीं.आजकल एकल परिवार होते हैं जहाँ माता .पिता और बच्चे ही साथ रहते हैं.ऐसे में बच्चे सामाजिकता या पारिवारिकता से लगभग अनजान   ही रह जाते हैं आजकल लड़कियों की शिक्षा पर भी अभिभावक बहुत ध्यान देते हैं,इस कारण भी लड़कियां अधिक व्यस्तता के कारण अपने में ही सिमटी रह जाती हैं.
                                 ऐसी परिस्थतियों  में जब एक लडकी ससुराल जाती है तो रिश्तों की नासमझी ,सामाजिकता की कमी और साथ में अपनी पढाई या कामकाजी होने का दबाव इस सबके बीच उसे ससुराल में निभाना होता है.तब वह कभी टी.वी पर देखे गए सीरियलों  के आधार पर और कभी अपनी सोच से बनाये गए आदर्शों के आधार पर चलने का प्रयास करती है क्योंकि अपनी अभी तक की जिन्दगी में उसने नए रिश्तों के साथ सामंजस्य बैठाना कभी देखा या सीखा ही नहीं होता है.
                     कुछ ऐसी ही परिस्थतियों में एल .एल. बी. का आख़िरी साल कर रही नीता [काल्पनिक नाम ]जब ससुराल गयी  .तो सबका दिल जीतने की इच्छा से उसने घर का सारा कार्य स्वयं करने का प्रयास किया,सास ननद आदि को पूरा आराम देना चाहा.उसने सोचा तो ये था क़ि शायद ऐसा करने से कोई उसकी पढाई के आड़े नहीं आएगा लेकिन ऐसा हो नहीं पाया क्योंकि गृहस्थी के कामों में बहुत अधिक निपुण न होने के कारण वह कुशलता पूर्वक सब कुछ सम्हाल नहीं पाई और हर समय खाली रहने के कारण सास आदि को उसके कामों में मीनमेख निकलते रहने की आदत पड़ गयी.आगे पढाई की बात करने पर सभी उसके विरोध में हो गए क्योंकि उन्हें आराम करने की आदत पड़ चुकी थी.इस केस में हम देखते हैं क़ि अपनी ही सोच के आधार पर फैसले लेने के कारण नीता को असफलता मिली इसलिए परिस्थतियों को देखते हुए अपनी क्षमतानुसार ही कोई कदम उठाना उचित रहता है.
                                                 जीवन में अपना  लक्ष्य  पाने के लिए और रिश्तों को निभाने के लिए न तो केवल स्वार्थ भाव ले  कर काम चल सकता है और न ही केवल समर्पण और त्याग से.हम सभी साधारण इन्सान हैं और इस नाते हममे मानवीय कमजोरियां भी हैं,ऐसे में हमें प्रत्येक स्थिति में अपने मौलिक स्वरूप में रहने का प्रयास करना चाहिए.ऐसे ही एक अन्य केस में शशि[काल्पनिक नाम]अपने घर में बड़ी संतान थी ,उसके विवाह के बाद माँ बाप पर दो और बहनों की जिम्मेदारी भी थी.ससुराल आकर उसने महसूस किया क़ि सभी लोग उसके साथ रुखाई से पेश आते हैं,साथ ही पति भी अपने मित्रों या परिवार के साथ ही व्यस्त रहना पसंद करते .वह इसका कारण तो नहीं समझ पाई लेकिन अपने को बहुत एकाकी अनुभव करने लगी.मातापिता पहले ही अन्य दो बहनों की शादी को ले कर परेशान रहते थे इसलिए उनसे भी कुछ न कह सकी.जितना ही वह अपने ससुराल वालों को प्रसन्न करने की चेष्टा करती उतना ही वे उसे और उपेक्षित करते जाते .इस केस में ससुराली जान उसकी कमजोर नस पकड़ चुके थे ,सबका दिल जीतने की कोशिश करते-करते मानसिक निराशा के चलते वह बीमार रहने लगी और जीवन से हताश हो गयी.
                                          समाज में इस तरह के ढेरों उदाहरण मिल जायेंगे.इसलिए हमारी यही सलाह है क़ि सिर्फ अपने ही आदर्श या अपने ही सोच पर न चलती रहें.सहनशीलता अवश्य रखें पर एक सीमा तक.अपना दिल किसी न किसी के सामने अवश्य खोल कर रखें चाहे वह आपकी डायरी ही क्यों न हो .समाजं और परिवार व्यक्ति से ही बने हैं इसलिए एक व्यक्ति के रूप में अपने को सम्हालते हुए आगे बढिए चाहे वह ससुराल हो या अन्य कोई जगह.

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

स्वास्थ्य और सौन्दर्य

नर हो या नारी सभी अपने स्वरूप या  सौन्दर्य के बारे में कुछ न कुछ अवश्य चिंतित  रहते हैं ,या यूँ कहें क़ि स्वयं को समाज के सामने एक बेहतर रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं.स्वभाव से ही सौन्दर्य प्रिय होने के कारण स्त्रियों में यह भावना कुछ अधिक ही होती हैउनकी इसी मनोदशा का लाभ प्रसाधन कम्पनियाँ उठाती हैं और अनेक प्रकार के सौन्दर्य प्रसाधन समय समय पर लाँच करती रहती हैं लेकिन इस  तरह से जो सुन्दरता मिलती है ,उससे लम्बे समय में लाभ की जगह हानि  ही होती  है.                                                                                स्वास्थ्य और सौन्दर्य का गहरा रिश्ता है यदि हम असली खूबसूरती चाहते हैं तो हमें स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए.एक अच्छा सुगठित शरीर सभी को मोहित कर लेता है लेकिन अच्छे शरीर का  सम्बन्ध किसी बाहरी प्रसाधन आदि से नहीं बल्कि अच्छी खुराक और व्यायाम  से होता है.हमारे शरीर का वजन हमारे पैरों को ढोना होता है .अगर शरीर का   वजन नियंत्रित रखा जाये तो पैरों पर ये अनावश्यक बोझ नहीं पड़ेगा और हम पैरों  का दर्द जोड़ों का दर्द आदि व्याधियों से बच सकेंगे.संतुलित आहार लेने से हमारे शरीर को उर्जा मिलती है अनावश्यक चर्बी का बोझ हमारे शरीर को नहीं उठाना पड़ता जिससे चेहरे पर एक स्वाभाविक चमक आती है और हमारा शरीर भी स्फूर्तिवान बना रहता है.                                                                                                                                 बढ़ते हुए प्रदुषण और खाने  पीने की चीजों में मिलावट के चलते कभी कभी सेहतमंद खाना खाते हुए भी हमारे शरीर में विषैले द्रव्य इकठ्ठा होजाते हैं इन विषैले द्रव्यों या टोक्सिन्स को शरीर सेबाहर निकलने के लिए हमें अधिक से अधिक पानी पीते रहना चाहिए पानी में घुल कर शरीर की गन्दगी मूत्र या पसीने आदि द्वारा बाहर निकलती रहती है इस तरह बिना कोई अतिरिक्त प्रयास किए शरीर की सफाई हो जाती है.पानी अधिक पीने से शरीर के सभी अंगों को आवश्यक मात्र में आक्सीजन मिल जाती है और हमारे चेहरे पर एक या ताजगी

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

gmail वास्तु टिप्स

वास्तु द्वारा उपलब्ध करवाई गयी मत्वपूर्ण जानकारियों से व्यक्ति अपने जीवन में समस्याओं का कुप्रभाव काफी हद तक कम कर सकता है-                                                                                                                                  १ मकान बनवाने के लिए ली जाने वाली भूमि की धुरी पृथ्वी के चुम्बकीय अक्ष से मेल खाती हो तो उसका धनात्मक प्रभाव बढ़ जाता है.                                                                                                                       २   उत्तरी सड़क से जुड़ा भूखंड धन सम्पन्नता और वैभव प्रदान करता है.                                                            ३ पूर्वी सड़क से जुड़ा भूखंड प्रसिद्धि ,नाम और सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदान करता है                                                ४  पश्चिमी सड़क से जुड़ा भूखंड औसत माना जाता है और व्यवसायिक गतिविधियों के लिए अच्छा रहता है .        ५  दक्षिणी सड़क से जुड़ा भूखंड महिलाओं से जुड़े उद्योगों के लिए उपयुक्त है.                                                     ६    उत्तर और पूर्व में सड़कों से जुड़े भूखंड सम्पूर्ण रूप से सम्पन्नता प्रदान कर सकते हैं.                                    ७  पूर्व और दक्षिण में सड़कों से जुड़े भूखंड महिलाओं के विकास के लिए अधिक अच्छे रहते हैं.                            ८ दक्षिण और पश्चिम में सड़कों से जुड़े भूखंड औसत दर्जे के माने जाते हैं.                                                        ९  पश्चिम और उत्तरी सड़कों से जुड़े और पूर्व और पश्चिम सड़क सेजुड़े भूखंड सामान्य रूप से अच्छे माने जाते हैं.                                                                                                                                                          १०  उत्तर और दक्षिण सड़कों से जुड़े भूखंड औसत मने जाते हैं.    

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

gmailवास्तु टिप्स 3

मनुष्य का जीवन भाग्य और कर्म से संचालित होता है,वास्तु भाग्य को बदल तो नहीं सकता लेकिन जीवन को आसान अवश्य बनता है.इन बातों का ध्यान रख कर आप अपने जीवन में सुखद परिवर्तन ला सकते हैं-                  १ मेन गेट सहित घर के सभी दरवाजे अन्दर की ओर खुलने चाहिए,बाहर की ओर नहीं.                                        २ मकान का सभी निर्माण कार्य दक्षिण और पश्चिम दिशा की ओर से लगा कर करवाएं .                                       ३ मकान की छत के कोने आवश्यक रूप से चार ही होने चाहिए पाँच या अधिक नहीं.                                         ४ घर के अन्दर फलदार पेड़ या बोनसाई लगाने से बचना चाहिए.                                                                    ५  मकान की ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर तथा पश्चिम से पूरब की ओर होनी चाहिए                                  प्रतिभा मिश्र

gmailवास्तु टिप्स 1

मानव की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं ने उसकी आँखों की नींद छीन ली है इसका समाधान वास्तु में है गहरी नींद के लिए ये वास्तु टिप्स आजमा कर देंखें._                                                                                                          १_सोते समय सर दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर रखें.                                                                                    २ कोशिश करें क़ि अपराह्न तीन बजे के बाद शयन कक्ष में सूर्य किरणें न आयें .                                                  ३ सोने से एक घंटे पहले टी.वी.बंद कर दें,रेडिओ या रिकार्ड प्लयेर पर शास्त्रीय संगीत सुन सकते हैं.                       ४ शयनकक्ष में यदि शीशा लगा है तो परदे से ढक  दें.                                                                                     ५  शयन कक्ष में कोई खुली अलमारी नहीं होनी चाहिए अलमारी कवर्ड हों.                                                    प्रतिभा मिश्र                                                                                           

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

शहर अपना शहर

 अपना शहर लखनऊ अब बदल रहा है .मैंने यहीं पर अपना बचपन गुजारा है .तब के लखनऊ और आजके लखनऊ में अंतर होना बहुत बड़ी बात नहीं है,क्यों क़ि ३५ सालों में कोई चीज अगर बदलती है तो वह स्वाभाविक है उसमे कोई अचरज की बात नहीं है.आश्चर्य तो इस बात का है क़ि पिछले ३५ महीनों से भी क्म समय में इस शहर ने अपना रंग बदला है.खुशी की बात ये है क़ि ये परिवर्तन अच्छाई की और है.हम लखनऊ वासी भले ही इस परिवर्तन की तरफ अभी ध्यान नादे पा रहे हों लेकिन बाहर से आने वाला हर आदमी यहाँ की तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाता है. हालाँकि शहर में इस समय क्म चल रहा है और इस कारण लोगों को असुविधा का सामना  करना पड़ रहा है ,लेकिन आशा यही है क़ि बहुत जल्दी क्म समाप्त होते ही एक बदले हुए सुन्दर लखनऊ को हम देख सकेंगे.