परिवार के निर्माण में पालन पोषण आदि के बारे में सभी स्त्रियाँ चिंतित रहती हैं लेकिन क्या वो अपनी सही भूमिका पहचानती हैं ? इस बारे में वास्तव में मैं निश्चित नहीं हूँ ,क़ि सचमुच हर स्त्री अपनी जिम्मेदारी अपनी मानसिकता के द्वारा समझ पा रही है ? या दूसरों के द्वारा थोपी गयी जिम्मेदारियों या कार्यों को पूरा कर के ही ये सोच कर निश्चिन्त हो जाती है क़ि मै अपने कर्तव्य ठीक से पुरे कर रही हूँ .आज मैंने व्यर्थ ही ये मुद्दा नहीं उठाया है बल्कि ये एक गहरे चिंतन का नतीजा है .मैंने महसूस किया है क़ि हम अपनी बालिकाओं पर या घर की स्त्रियों पर इतनी ज्यादा जिम्मेदारियां या कहा जाये काम का बोझ डाले रहते हैं,क़ि वे स्वतन्त्र रूप से समाज या परिवार में अपनी भूमिका के बारे में सोच ही नहीं पाती हैं .
मैं इस बारे में कोई भाषण देना नहीं चाहती ,बस इतना चाहती हूँ क़ि सभी बहने जरुर एक बार अपने दिमाग पर जोर ड़ाल कर यद् करें क़ि क्या वो अपनी खुशी से अपनी जिम्मेदारी समझ कर पुरे जोश से अपना जीवन बिता रही हैं या फिर सिर्फ जल्दी-जल्दी दूसरों को संतुष्ट कर के अपना कीमती समय बर्बाद ही कर रही हैं इस बारे में जरुर सोचियेगा ,कुछ दिन मैं इसी वषय पर रहूंगी चर्चा करते रहेंगे नमस्कार ......
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